सदी के अंत तक हिमालय पर ग्लोबल वार्मिंग का खतरा 60% कम हो जाएगा..।पढ़ें इस रिपोर्ट।
ग्लोबल वार्मिंग हिमालय को खतरा बनाए रखता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण हिमालय के ग्लेशियरों का क्षेत्रफल और द्रव्यमान दुनिया भर में सबसे तेजी से पिघल रहा है। 21वीं सदी के अंत तक हालात ऐसे ही रहेंगे तो हिमालय के ग्लेशियर 60% कम हो जाएंगे।
विशेषज्ञों ने इन ग्लेशियरों की रिपोर्ट रिमोट सेंसिंग डेटा से बनाई। 1994 में इन ग्लेशियरों का क्षेत्र 368 वर्ग किमी था। 2020 में यह करीब 354 वर्ग किमी कम हो गया था। रिपोर्ट के अनुसार, 1901 से 1990 तक हुई तापमान वृद्धि इसका मुख्य कारण थी। जिसमें वर्ष में 0.04 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि दर्ज की गई थी। यहां तापमान बढ़ने के साथ ही वर्षा में 10 मिमी प्रति दशक की कमी हुई।
गंगा के आस्तित्व पर खतरा
अपर अलकनंदा घाटी के छोटे ग्लेशियरों के साथ-साथ पूर्व-पश्चिम दिशा में बहने वाले ग्लेशियरों पर तापमान वृद्धि का असर सर्वाधिक पड़ा। विशेषज्ञों की मानें तो मानवीय हस्तक्षेप के चलते ग्लेशियर प्रभावित हो रहे हैं। जिससे कि गंगा के आस्तित्व पर खतरा है।
1994-2020 तक सर्वाधिक घटे ग्लेशियर
भू-विशेषज्ञों के करीब ढाई दशक तक किए गए शोध बताते हैं कि 1994 से लेकर 2020 तक हिमालय के ग्लेशियरों की पिघलने की दर सबसे अधिक रही। इस अवधि में ये करीब 13 मीटर प्रति वर्ष पीछे खिसक गए। इतना ही नहीं पिछले तीन दशकों में मध्य हिमालय व उसके आसपास के तापमान में 0.1 से 0.15 डिग्री सेल्सियस प्रति दशक की दर से वृद्धि हुई। जबकि इसी अवधि के दौरान बारिश में भी लगातार कमी दर्ज की गई है।