वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 23 जुलाई को पेश करेंगी आम बजट, निजी उपभोग में कमी सबसे बड़ी चुनौती
नई दिल्ली: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 23 जुलाई को नरेंद्र मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल का पहला आम बजट पेश करेंगी। पिछले वित्त वर्ष अप्रैल 2023 से मार्च 2024 तक भारतीय अर्थव्यवस्था 8.2% की दर से बढ़ी है, लेकिन निजी उपभोग खर्च में मात्र 4% की वृद्धि हुई है। यह भारतीय अर्थव्यवस्था का 55-60% हिस्सा है।
कोरोना महामारी के समय (अप्रैल 2020 से मार्च 2021) को छोड़ दें तो यह अप्रैल 2002 से मार्च 2003 के बाद निजी उपभोग व्यय में सबसे कम वृद्धि है। निजी उपभोग खर्च में कमी सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती बनी हुई है। केंद्रीय बजट में इसका समाधान निकालना आवश्यक है।
सरकार कई तरीकों से लोगों के हाथों में अधिक पैसा देकर इस चुनौती से निपट सकती है। केंद्र सरकार पेट्रोल-डीजल की बिक्री पर अधिक टैक्स ले रही है। एक जुलाई 2024 को दिल्ली में एक लीटर पेट्रोल की कीमत 94.72 रुपये थी, जिसमें पांचवां हिस्सा केंद्र सरकार के विभिन्न टैक्स के रूप में जनता से वसूला जाता है। इसी तरह, डीजल पर भी 18% टैक्स लिया जाता है। इन टैक्स में कटौती करके सरकार लोगों के हाथों में अधिक पैसा दे सकती है, जिससे खुदरा महंगाई दर में भी कमी आएगी। इस साल जून में खुदरा महंगाई दर 5.1% थी।
आयकर में कटौती और इनकम टैक्स स्लैब बढ़ाने पर विचार करना चाहिए। वित्त वर्ष 2021-22 के आंकड़ों के अनुसार, 6.85 करोड़ लोगों ने इनकम टैक्स रिटर्न फाइल किया था, जिनमें से 4.2 करोड़ लोगों ने सिर्फ रिटर्न फाइल किया और कोई टैक्स नहीं दिया। 62 लाख लोगों ने डेढ़ लाख रुपये से अधिक टैक्स दिया।
भारत में आम तौर पर एक घर में केवल एक व्यक्ति कमाता है, औसतन एक भारतीय घर में पाँच व्यक्ति होते हैं। इसलिए, आयकर में कटौती होने पर न केवल इनकम टैक्स देने वालों के खर्च करने की शक्ति बढ़ेगी बल्कि उनके परिवार भी अधिक खर्च करने में सक्षम होंगे।
निजी उपभोग खर्च में कमी के अलावा भारतीय अर्थव्यवस्था, निजी कॉर्पोरेट निवेश में स्थिरता की समस्या से भी जूझ रही है। हाल ही में ‘द हिंदू’ में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, अप्रैल से जून 2024 के दौरान कॉरपोरेट्स ने नई निवेश योजनाओं की सबसे कम घोषणाएँ की हैं।
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के अनुसार, 2023-24 में लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट (एलएफपीआर) 40.4% रही, जो 2016-17 के 46.2% से कम है।
रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) के आंकड़ों के अनुसार, 2019-20 से 2023-24 के आख़िर तक लगभग 10.9 करोड़ नौकरियाँ निकलीं, लेकिन अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर सस्टेनेबल एम्प्लॉयमेंट के प्रमुख अमित बसोले के अनुसार, “ये लोग नौकरी नहीं मिलने की वजह से कृषि और गैर-कृषि सेक्टर में खुद का काम कर रहे हैं।”
अगर सरकार करों में कटौती करती है तो इसे कहीं और से पूरा करना होगा या फिर अपने खर्च में कटौती करनी होगी। 2023-24 में भारत का राजकोषीय घाटा 16.54 लाख करोड़ रुपये रहा, जो सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 5.6% है। इसे कम करने की जरूरत है।
आरबीआई ने 2022-23 में लगभग 87,000 करोड़ रुपये की तुलना में 2023-24 में 2.1 लाख करोड़ रुपये का लाभांश दिया है। इसके अलावा, सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों से मिलने वाला लाभांश भी आशाजनक है। इन स्रोतों से आने वाले धन से सरकार को राहत मिलनी चाहिए और करों में कटौती करने में मदद मिलेगी।